हम गली के कुत्ते…
द्वारा अनु सैनी
दुनिया से होकर बेखबर आखिर कौन करे हमारी कद्र सङक के किसी कोने में हम पङे रहते किसी टीले पर चढ़े रहते गोल मोल हो कहीं सो जाते वरना गली के नुक्कङ पर खङे हो आने जाने को देख उन्हें सूंघ आते रोटी की तलाश में इधर उथर हूं भटकते जाते कभी कोई भला मानुस दूध रोटी हमे खिला जाते गोश्त की हड्डी मिले तो मज़े उस दिन आ जाते कोई कोई प्यार कर जाता पर ज्यादातर हर कोई दुत्कार जाता मां ने पैदा करके छोङ दिया कितने हमारे भाई बहनों ने यूँही दम तोङ दिया किस्मत जिस की अच्छी थी उसे तो किसी ने अपना लियासर ढकने को इक छत दिया बाकी हमारे जैसे किसी तरह ऐसे तैसे ही पल गए जहां सोने खाने को मिला वहीं हम तो चल दिए पालतु कुत्तों से ठाठ हमें कभी नहीं मिले शायद ये हैं हमारे पुराने कर्मों के कोई सिले कोई हमसे पूछे कष्ट सिर्इन्सानों ने ही नही हमने भी हैं सहे सिर्फ गली के कुत्ते बन कर जो रह गए…
वो शराबी…
द्वारा अनु सैनी
इक शराबी झूमता हुआ धुन अपनी में रोज़ चला जाता था देख उसको इस हालत में नशा मुझे आता था कभी वो इधर लङखङाता कभी उधर गिर जाता फिर सहारा ले पैरों पे अपने खङा हो जाता देर तक अपनी खिडकी से मैं उसे देखती थी कमरे में जलते हीटर से पांव सेंकती थी मन में तरह तरह के प्रश्न थे उठते ऐसी क्या मजबूरी थी कि जो कुछ लोग मदहोशी की हद तक थे पीते आखिर इक दिन जब मुझसे रहा ना गया मैने खिडकी से चिल्ला कर उससे पूछ ही लिया "भाई,ऐसी क्या मजबूरी,क्यों इतना पीते हो?ऐसे कैसे जीते हो? जो कुछ कमाते हो क्या इसी पर सब लुटाते हो?
घर में क्या तुम्हारे कोई नहीं जो राह दिखाए तुम्हें सही?" सुन मेरी बात शराबी ने सिर अपना मेरी ओर घुमाया संतुलन अपना किसी तरह बनाया फिर हंस कर बोला," कोई क्या जाने मैं क्यों पीता हूं? किसी की बला से ,मैं मरता या जीता हूं बीवी मेरी बहुत साल पहले ही मर गॢई इक बेटा था जिसकी परवरिश पेट काट का कर अपने मैने की पढा लिखा कर नौकरी लगवाई शादी उसकी करवाई और जैसे ही नौकरी से सेवा निवृत्ति मुझे मिल गई
बीवी उसकी मुझसे झगङा कर उसे लेकर किसी दूसरे शहर चली गई फिर कभी किसी ने मेरी खबर नहीं ली पोते की सूरत देखनी भी मुझे नसीब नही जब किसी को मेरी परवाह नहीं तब क्या गम क्या खुशी? पहले जिस चीज को कभी हाथ तक नही लगाया पर अब तो ये शराब ही है मेरी साथी मेरा साया पीकर इसे मैं मस्त हो लेता हूं सब कुछ भुला कर जी लेता हूं।" ये कहकर वो तो हाथ जोङ झूमता आगे बढ गया पर आंखे मेरी नम कर गया