आओ चलें
बढे चले
डाले हाथों में हाथ
अपने हमसफर के साथ
आखों में ढेरों सपने लिए
मन में विश्वास के जलते दिए
असीम प्रेम से भण्डार भरे
रौशनमय संसार बङे
खुशियों की बौछारें उङाते
प्यार के नगमे गाते
फूलों की तरह खिलखिलाते
जी जान से जिन्दगी को चाहते
पूरी तरह से इसे जी जाते
और कारवां जिन्दगी का यूंही बढाते
आओ चलो चले
बढे चले…
द्वारा अनु सैनी
होली जैसे ही पास आने लगती
बच्चों की तो निकल पङती
खूब मस्ती छा जाती हवा में इक नई रौनक आ जाती
मम्मी से ज़िद्द कर सब पैसे ऐंठ जाते और बाज़ार से रंग बिरंगे गुब्बारों के पैकेट ले आते
फिर भर गुब्बारे पर गुब्बारा आने जाने वालों पर बेशुमार फेंकते
और मारते ही झट जल्दी से छिप जाते
फिर दिवार में बने झरौंको से झांकते जाते
गुब्बारा लग जाए तो खुशी से खूब चिल्लाते
नाचते गाते
और ना लगे तो ‘धत् तेरे की’ कह अफसोस मनाते
पर नटखट बच्चों की टोली कभी हिम्मत नहीँ हारती
हौंसले बुलन्द कर फिर चालू हो लेती
और आने जाने वालों की मुसीबत बन जाती
बेचारे ऊपर नीचे ताकते खुद को बचाते किसी तरह वो निकलने की कोशिश करते
और बच्चे एक माहिर निशानेबाज की तरह निशाना अपना साधते
पूरी शाम यूं ही निकल जाती
कश्मकश चलती रहती
और जिस दिन होली खत्म हो आती
तभी आने जाने वालों को चैन की सांस मिलती…
द्वारा अनु सैनी